Sunday, January 16, 2011

जीवन के रंग

कुछ लिखा, कुछ समझा, कुछ तुमसे है पूछा,
कुछ पाया, कुछ खोया, कुछ बहुत साल धोया,
कभी हंसी, कभी सोयी, कभी पूरी रात रोई,
कभी जीती, कभी हारी, कभी समझा न कोई,

क्यों है यह दीवार जो रास्ता रोके,
क्यों देती है यह नाव कभी ऐसे धोके,
कभी अपनों ने मारा पराया बनके,
कभी गैरों ने संभाला यों अपना होके।

दिखाए ये ज़िन्दगी हर रंग ऐसा,
जो हर रोज़ नया हो, ना पहले जैसा।
जो कभी हो सुनहरा, तोह कभी काली परछाई,
कभी कितनी हलकी, तोह कभी इसमें कितनी गहराई।

जो आज मुझे हसाए, वो कल रुलाता क्यों है?
जो आज करीब आये, वो कल दूर जाता क्यों है?
यह कैसे रंग है, जो में पहचान ना पाई।
इसके कई चेहरे, इसमें कितनी गहराई।

रोज़ जो एक नया रंग मेरे दिन पे चढ़ जाये।
क्या उसमें आज मेरी चुनर रंग जाये?
और अगर ये रंग कल फीका पद जाये,
तो क्यों फिर येही रंग दाग कहलाये?

रिश्तों के रंग हो,
या जीवन के रंग,
सब नहीं ढलते,
एक साथ, एक संग।
चुनना है उस रंग को,
जो साए को रंग दे।
मेरे जीवन के हर रंग का,
वो चरित्र बदल दे॥

1 comment:

Shashikant said...

Life is beautiful and do your bit to make it wonderful.
What a jem you are!!! Poem jhakkas hai. Likte rehana aur post karte rehana. :) :)