Friday, April 17, 2009

एक कोशिश ...

हमने हमेशा भीड़ को दूर से ही देखा
जो आगे बढे तो नदी ने रुख बदल लिया
जो सोचा पानी बन कर शराब में घुल जाऊं
तो शराब पानी बन कर उनका जानाशीन हो गया

जो सोचा दरवाज़ा खोल उनको घर बुलाएँगे
आज उनकी हर अदा को पलकों पर बिठाएंगे
तो मेरे यकीन ने अपना शहर बदल लिया
जो सोचा पानी बन कर शराब में घुल जायेंगे
तो शराब पानी बन कर उनका जानाशीन हो गया

जो सोचा मुस्कुरा कर सबको गले लगायेंगे
कल की बातों को भूल कर आज को आज अपनाएंगे
तो बेरहम ज़िन्दगी ने आज नसीब में नहीं दिया
जो सोचा पानी बन कर शराब में घुल जायेंगे
तो शराब पानी बन कर उनका जानाशीन हो गया

जो पंख लगा बादलों संग उड़ना चाहा
तो परिंदों ने हमसे मूह मोड़ लिया
जो सोचा मछली बन पानी में लहराऊँ
तो उस साल बादलों ने दिल तोड़ दिया


जो हवा बन कर पत्तों को छूना चाहा
तो पतझड़ ने पेडों को सूना कर दिया
जो सोचा पेड़ बन ज़मीन पर बस जाऊँ
तो ज़मीन ने जड़ों को बेदख्ल कर दिया
जो सोचा पानी बन कर शराब में घुल जाऊं
तो शराब पानी बन कर उनका जानाशीन हो गया

2 comments:

Unknown said...

Good One!!!!
One more master piece

adityagarg said...

Like It Like It!!!!